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Wednesday, 27 January 2021

सोचूं?

 जो सोचू थोडा, तो खुद से खफा हूं,

जो ना सोचूं तो खुद को दगा दूं,

ये कैसी दोहरी ज़िंदगी जीने लगा हूं,

ये पूछता हूं खुद से,

जवाब मिले या न मिले पूछता हूं हक़ से,

कहानी खत्म नहीं होगी ये, बस किरदार निभाने की जरूरत है,

जो बने जगह ज़िंदगी में किसी की, हार ना मानने की जरूरत है।


-Himanshu Tobaria 

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