जो सोचू थोडा, तो खुद से खफा हूं,
जो ना सोचूं तो खुद को दगा दूं,
ये कैसी दोहरी ज़िंदगी जीने लगा हूं,
ये पूछता हूं खुद से,
जवाब मिले या न मिले पूछता हूं हक़ से,
कहानी खत्म नहीं होगी ये, बस किरदार निभाने की जरूरत है,
जो बने जगह ज़िंदगी में किसी की, हार ना मानने की जरूरत है।
-Himanshu Tobaria
No comments:
Post a Comment